Wednesday, April 20, 2011

कितने मौसम बीते


कितने मौसम बीते,
कितनी यादें समेट ले गए,
मैं भीगता रहा बरसातों में, तुम सिमटे रहे ठंडी रातों में,
गर्मी हमारे प्यार की लेकिन बनी रही....
पलट कर हाथ जो थमा मेरे यार ने फिज़ा बदल गयी..
इक बर्फ की चादर थी झट से पिघल गयी...

मैं गंगा बहती रही


मैं गंगा बहती रही
और नाले बढ़ते गए
सरकार और पैरोकारों के घोटाले बढते गए......

खोजने को मैं ही ना मिला
बिछुडे घरवाले बढते गए,
मैं गंगा बहती रही और नाले बढते गए....

उम्मीद के आसमान पर चमक रहा था उगता सूरज
सपनों के शहर में बादल काले बढते गए,
मैं गंगा बहती रही और नाले बढते गए....

घिसटता चल रहा है घुटनों पर हर इंसान यहाँ,
उड़ते पैरों में हरपल रिसते छाले बढते गए,
मैं गंगा बहती रही और नाले बढते गए....

© 2011 कापीराईट सेमन्त हरीश