Friday, May 27, 2011
Thursday, May 26, 2011
Monday, May 23, 2011
Monday, May 16, 2011
Tuesday, May 10, 2011
शायद ज़िंदगी बदल रही है.....!!!
शायद ज़िंदगी बदल रही है
जब में छोटा था शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी मुझे
याद है मुझे मेरे घर से स्कूल तक का वो रास्ता,
क्या नहीं था वहाँ, चाट के ठेले , जलेबी की दूकान , बर्फ के गोले, सब कुछ...
अब वहाँ मोबाईल शॉप , वीडिओ पार्लर है , फिर भी सब सूना है ...
शायद अब दुनिया सिमट रही है,
जब
में छोटा था , शामें बहुत लम्बी हुआ करती थी , मैं हाथ में
पतंग की डोर पकडे घंटों उड़ा करता था , वो लम्बी लम्बी साईकिल की
रेस , वो बचपन के खेल , वो हर शाम थक कर चूर हो जाना ,
अब शाम नहीं होती , दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है , शायद वक़्त सिमट रहा है,
जब में छोटा था , दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना , दोस्तों के घर का खाना, वो लड़कियों की बातें , वो साथ में रोना .....
मेरे अब भी कई दोस्त हैं , पर दोस्ती न जाने कहाँ ....
जब भी ट्राफिक सिग्नल पर मिलते हैं,
HI करते हैं और अपने अपने रस्ते चल निकलते हैं ,
होली , दिवाली , जन्मदिन , नए साल पर बस SMS आ जाते हैं
शायद अब रिश्ते भी बदल रहे हैं.....
दोस्त भी बदल रहे हैं .....
हम आधुनिक हो रहे हैं...
Friday, May 6, 2011
भले प्यार का रंग ना बदला....!!!
भले प्यार का रंग ना बदला!
मेरे गाँव का रंग ना बदला,
पीपल छांव का रंग ना बदला,
देख, प्यार का रंग ना बदला !
परिवर्तन के नियम ठगे हैं !
हर पल हम कुछ बने नए हैं !
माँ का आँचल मैला लगता,
पिता का घेरा तोड़ चुके हैं,
बाबा की खटिया ना बिसरी,
नानी का चूल्हा ना बदला,
भले प्यार का रंग ना बदला!
मेरे गाँव का रंग ना बदला,
पीपल छांव का रंग ना बदला,
देख, प्यार का रंग ना बदला !
अब तक है ये कितना उजला !
आम का पकना, रस्ता तकना
पगडंडी का घर घर रुकना ,
कोयल का पंचम सुर गाना,
हर महीने पूनम का आना,
अरे कहो! कब व्रत है अगला ?
तीज, चौथ कब, कब कोजगरा ?
क्या कहते हो सब कुछ बदला !
भले प्यार का रंग ना बदला!
मेरे गाँव का रंग ना बदला,
पीपल छांव का रंग ना बदला,
देख, प्यार का रंग ना बदला !
Wednesday, May 4, 2011
फिर यों ही गुजर गया आज का दिन....!!!
डल झील पर सूर्यास्त |
क्या बात है
फिर यों ही गुजर गया
तुम्हारा आज का दिन
न तो प्यार का गीत लिखा
ना ही उदासी की कहानी पोंछी
ना तो उगते सूरज को नमन किया,
ना तुलसी को जल दिया,
ना ही डूबते सूरज की
फोटो खींची
ना ही बहते झरनों की तस्वीर बनाई
ना ही हिना वाले
हाथों को छुआ,
न ही चूड़ी वाली
कलाई को चूमा,
न ही पनीली
आंखों में झांका,
न ही दर्दीली
आवाज़ को आंका,
जाने किस अँधेरे में
खोये रहे तुम
कांच की दीवारों में सोये
रहे तुम,
अपने ही गणित के अनसुलझे सवालों के,
गुणा, भाग, धन, ऋण, प्रतिशत में,
उलझे रहे तुम,
शून्य ही रहा अंत तक अनंत,
सत्य से परे असत्य के मंथन में,
क्या बात है
फिर यों ही गुजर गया
तुम्हारा आज का दिन
बिखर गया दिन,
यों ही गुज़र गया
आज का दिन।
© 2010 कापीराईट सेमन्त हरीश
एक तुम्हें पाने की ज़िद.....!!!
एक तुम्हें पाने की ज़िद थी,
उम्मीदों में तुम ही थी बस,
बाकी तो सब पा ही गया हूँ,
शौक नहीं था पर,
वो भी छोड़ दी मैंने,
उम्मीदों में तुम ही थी बस,
बाकी तो सब पा ही गया हूँ,
शौक नहीं था पर,
तुम्हारी खातिर,
राग-रंग, शानोशौकत पर छा भी गया हूँ,
राग-रंग, शानोशौकत पर छा भी गया हूँ,
हांसिल है मुझे,
हर आँख को चमकाता,
नज़रों को भाता ,
गर्व से उठाता ,
एक समंदर एक मंज़र,
जबरन बांधी आशायें,
लेकिन मैं बेबस,
तुम नहीं,
तुमको पाने की जिद भी नहीं,
सिर्फ सन्नाटे,
यादों की लहरों का निरंतर बहता शोर,
खिड़की से ताकते रहकर,
टूटते सितारों से मांगने की आदत छोड़ दी मैंने,
बस एक तुझे पाने की ज़िद थी,
वो भी छोड़ दी मैंने......
उन ख्वाबों की,
उन गीतों की,
उन पुराने खतों में उलझे सुलझे,
कहे अनकहे शब्दों की, सवालों की, जवाबों की,
हर दिशा मोड़ दी मैंने.
बस एक तुम्हें पाने की ज़िद थी,
हर दिशा मोड़ दी मैंने.
बस एक तुम्हें पाने की ज़िद थी,
वो भी छोड़ दी मैंने......
© 2010 कापीराईट सेमन्त हरीश
मैं एक पत्थर ....!!!
मैं पत्थर पड़ा रहा ठोकरों में,
तपता रहा, भीगता भी रहा,
तुमने कभी उठा कर फेंका किसी चिड़िया की ओर,
कभी तराश दिया मंदिर की मूरत में,
कभी अंगुली की अंगूठी में,
कभी नथली में किसी की चमकती सूरत में,
मैं सराहा जाऊं या हो जाऊं बदनाम,
तुम्हें क्या,
पत्थर तो होता ही बेजान है,
अपनी सफाई क्या देगा,
दीवार में चुन गया तब भी मिटा,
दो किनारों को बाँधा तब भी मिटा,
इंतज़ार हमेशा परिणाम का ही रहता,
पत्थर सिर्फ एक नज़र की राह तकता है....
अपना लो तो अंगुली से अटारी तक कीमत ही कीमत...
फेंक दो तो नफ़रत ही नफ़रत,
तुम्ही हो मेरे कर्ता,
तुम्ही हो संगकार,
तुम्ही हो संगदिल,
मेरा क्या,
मैं पत्थर पड़ा रहा ठोकरों में,
तपता रहा, भीगता भी रहा,
तुमने कभी उठा कर फेंका किसी चिड़िया की ओर,
कभी तराश दिया मंदिर की मूरत में,
कभी अंगुली की अंगूठी में,
कभी नथली में किसी की चमकती सूरत में...
© 2010 कापीराईट सेमन्त हरीश
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