Wednesday, May 4, 2011

मैं एक पत्थर ....!!!


मैं पत्थर पड़ा रहा ठोकरों में,
तपता रहा, भीगता भी रहा,
तुमने कभी उठा कर फेंका किसी चिड़िया की ओर,
कभी तराश दिया मंदिर की मूरत में,
कभी अंगुली की अंगूठी में,
कभी नथली में किसी की चमकती सूरत में,
मैं सराहा जाऊं या हो जाऊं बदनाम,
तुम्हें क्या,
पत्थर तो होता ही बेजान है,
अपनी सफाई क्या देगा,
दीवार में चुन गया तब भी मिटा,
दो किनारों को बाँधा तब भी मिटा,
इंतज़ार हमेशा परिणाम का ही रहता,
पत्थर सिर्फ एक नज़र की राह तकता है....
अपना लो तो अंगुली से अटारी तक कीमत ही कीमत...
फेंक दो तो नफ़रत ही नफ़रत,
तुम्ही हो मेरे कर्ता,
तुम्ही हो संगकार,
तुम्ही हो संगदिल,
मेरा क्या,
मैं पत्थर पड़ा रहा ठोकरों में,
तपता रहा, भीगता भी रहा,
तुमने कभी उठा कर फेंका किसी चिड़िया की ओर,
कभी तराश दिया मंदिर की मूरत में,
कभी अंगुली की अंगूठी में,
कभी नथली में किसी की चमकती सूरत में...
© 2010 कापीराईट सेमन्त हरीश

1 comment:

  1. uncle ji this poem is worth reading aapke akshro ne tho paatharo mein be jaan daal di......subse superb line is"mein pathar pada raha tokoro mein taptha raha, beegtha raha"... aisa laga padh k as if even non living things too have heart.!!! excellent......

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