शायद ज़िंदगी बदल रही है
जब में छोटा था शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी मुझे
याद है मुझे मेरे घर से स्कूल तक का वो रास्ता,
क्या नहीं था वहाँ, चाट के ठेले , जलेबी की दूकान , बर्फ के गोले, सब कुछ...
अब वहाँ मोबाईल शॉप , वीडिओ पार्लर है , फिर भी सब सूना है ...
शायद अब दुनिया सिमट रही है,
जब
में छोटा था , शामें बहुत लम्बी हुआ करती थी , मैं हाथ में
पतंग की डोर पकडे घंटों उड़ा करता था , वो लम्बी लम्बी साईकिल की
रेस , वो बचपन के खेल , वो हर शाम थक कर चूर हो जाना ,
अब शाम नहीं होती , दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है , शायद वक़्त सिमट रहा है,
जब में छोटा था , दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना , दोस्तों के घर का खाना, वो लड़कियों की बातें , वो साथ में रोना .....
मेरे अब भी कई दोस्त हैं , पर दोस्ती न जाने कहाँ ....
जब भी ट्राफिक सिग्नल पर मिलते हैं,
HI करते हैं और अपने अपने रस्ते चल निकलते हैं ,
होली , दिवाली , जन्मदिन , नए साल पर बस SMS आ जाते हैं
शायद अब रिश्ते भी बदल रहे हैं.....
दोस्त भी बदल रहे हैं .....
हम आधुनिक हो रहे हैं...
Rightly said...nothing can ever compete with those wonderful days
ReplyDeletebadlt es duniya janne walo me ek aap hi nahi hai ham bhi shamil hai neelam sharma
ReplyDeleteits superb capt. sahab
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