Wednesday, May 4, 2011

फिर यों ही गुजर गया आज का दिन....!!!


डल झील पर सूर्यास्त

क्या बात है
फिर यों ही गुजर गया
तुम्हारा आज का दिन
न तो प्यार का गीत लिखा
ना ही उदासी की कहानी पोंछी

ना तो उगते सूरज को नमन किया,
ना तुलसी को जल दिया,
ना ही डूबते सूरज की
फोटो खींची
ना ही बहते झरनों की तस्वीर बनाई

ना ही हिना वाले
हाथों को छुआ,
न ही चूड़ी वाली
कलाई को चूमा,

न ही पनीली
आंखों में झांका,
न ही दर्दीली
आवाज़ को आंका,

जाने किस अँधेरे में
खोये रहे तुम
कांच की दीवारों में सोये
रहे तुम,
अपने ही गणित के अनसुलझे सवालों के,
गुणा, भाग, धन, ऋण, प्रतिशत में,
उलझे रहे तुम, 

शून्य ही रहा अंत तक अनंत,
सत्य से परे असत्य के मंथन में,

क्या बात है
फिर यों ही गुजर गया
तुम्हारा आज का दिन

बिखर गया दिन,
यों ही गुज़र गया
आज का दिन।
© 2010 कापीराईट सेमन्त हरीश

4 comments:

  1. din maheeney saal guzartey jaayenge........bas yunhi..

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  2. Dr pushplata sharma.February 20, 2013 at 3:52 AM

    Yu hi gujar gaya aaj ka din...Jane kis andhere mai khoye rahe tum, kanch ki deewaron mai soye rahe tum...in paktion ne dard ki garayi ko chhoo liya hai...ek injaar. ..shayad kabhi na khatm hone wala intjar...har pankti mai ek dard bhara ahsas...bhut khoob Harish bhai.

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