.......जैसे सूखते सोते
अचानक भर जाते हैं लबालब,
तुम आओ ! एक बार फिर धमनियों में रक्त की तरह फैल जाओ,
फिर चमक उठेंगी ये बर्फ लदी चोटियाँ अचानक भर जाते हैं लबालब,
तुम आओ ! एक बार फिर धमनियों में रक्त की तरह फैल जाओ,
फिर पिघल जायेंगी ये सफेद चादरें
बसंत अब लौट आयेगा
हरी घाँस कब आस छोडती है,
बर्फ कभी न कभी तो पिघलती है,हरी घांस ये सच जानती है,
तभी हर बार एक बार फिर घुट जाने को उग आती है...