Thursday, July 28, 2011

हरी घाँस कब आस छोडती है......

.......जैसे सूखते सोते
अचानक भर जाते हैं लबालब,
तुम आओ ! एक बार फिर धमनियों में रक्त की तरह फैल जाओ,
फिर चमक उठेंगी ये बर्फ लदी चोटियाँ 
फिर पिघल जायेंगी ये सफेद चादरें 
बसंत अब लौट आयेगा
हरी घाँस कब आस छोडती है, 
बर्फ कभी न कभी तो पिघलती है,
हरी घांस ये सच जानती है,

तभी हर बार एक बार फिर घुट जाने को उग आती है...

उसकी बात-बात में छल है...


उसकी बात-बात में छल है
माया ही उसका संबल है
वह वियोग का बादल मेरा
छाया जीवन आकुल मेरा
केवल कोमल, अस्थिर नभ-सी
वह अंतिम भय-सी, विस्मय-सी
फिर भी है वह अनुपम सुंदर.......
सच है.. पर ये भी सच है.. कि किताब बिकती है कहानी खरीदी जाती है, पढ़ी जाती है..... किताबों का मोल होता है... कहानी अनमोल होती....... किताब दराज में बसती  हैं ... कहानी दिल में... किताब कंगूरों सी ... कहानी नींव सी...... अंदर दबी,  सजी जिल्द के बीच...

Wednesday, July 27, 2011

वो यूं ही दुनिया के तकाजों की दुहाई देता रह गया ..... 
फूलों का मौसम अंगुली छोड़ गया... 
पतझड़ फिर लौट आयी ... 
वक्त कब रूका है किसी के लिए.....

Monday, July 25, 2011

आँखों में छुपे समंदर के पार...



बालकनी से देखती काले सावन के बादल
समेट लेती है वह जूड़े में अपनी फ़ैली लंबी परछाई
जिसके घने काले आगोश में , शाम खामोश प्यार की गवाही देती थी 
घूमने लगती है यूँ ही दरवाजे को खुला रख
इधर-उधर कमरे से चौके तक
कभी सोफे का सीधा करती  
कभी एक बार फिर से दूध गर्म करती ..
बिखरे घर को समेटती,
बिस्तर की सिलवटों को मिटाती ,
व्यस्त होने का दिखावा करती,
हँसती है फीकी हँसी... आँखों में छुपे समंदर के पार...  

तुम एक बार बाहें फैलाओ तो सही.....

अजनबी...
तुम एक बार बाहें फैलाओ तो सही..
मुझे मालूम है जब तुम ....
तब...
मेरे बंधे सपनों की सब गिरहें खुल जायेंगी
और मैं तुम्हारी कोशिशों में और भी मासूम हो जाऊँगी
उस दिन मैं सारी विष घुली यादें एक घूँट में पी जाऊंगी
सिर्फ एक तुम्हारे नशे में चूर ...
मेरे हौंसलों की नई पगडंडियों पर गिरती रात और बरसात का पानी...
इस बार का सावन नया नया...
मैं एक तितली की तरह.... तुम्हारे ख्वाबों के रंगों में सराबोर हो कर आकाश में उड़ जाऊँगी....
चाहे जब मुझे आकाश में उड़ाना, पर मुझे अपनी चाहत में बांधे रखना
ताकि इस बार तुम्हारे बंधनों में बंध कर जी सकूँ, उड़ने का सुख पहचान सकूँ
मुझे प्यासी ही रखना, ताकि हमेशां प्यासी रहूँ, तुम्हारी प्यास में....
अनंत तक  इस प्यास को जी सकूँ,
और शून्य में इसी प्यास में मर सकूँ.....

Monday, July 18, 2011

आज दामिनी फिर मुस्कायी....

















मेघों की छांव में भीगी हुई  
बारिश की तरह जिसके बालों में घुली बारिश 
एक नदी छुपाकर बैठी अपनी पलकों में,
तपते रेगिस्तान के किनारे..... वो   
इस बार के सावन में इसी बारिश में  
एक दिन बिजली सी हँसी उसने कही  
जाने क्या हुआ भूल गया जो कुछ याद रखना था 
इस घनघोर बारिश में कहीं रास्ता नहीं दिखाई दिया 
जाने क्यों सावन में बादल से मांगने को जी करता है..
"दामिनी हर दम मुस्कुराती रहे ..."
मैं भटका हुआ रास्ता ढूँढता रहूँ उसकी चमक में .....

जबसे उसने मुझसे आज़ाद उड़ने की बात कही...














जबसे उसने मुझसे आज़ाद उड़ने की बात कही...



बार बार देखता हूँ खुले आसमान को
आज़ाद उड़ने का बहाना ढूँढ़ता हूँ


ओस सा हर रोज, धूप में पिघलता हूँ
धूल की गहराई में पहचाना ढूँढ़ता हूँ


अँधेरे-अँधेरे, बहते हुए रास्तों पर,
तारों की भीड़ में ठिकाना ढूँढ़ता हूँ


मिट गया इस शहर का, इतिहास सारा 
गलियों में पीपल पुराना ढूँढ़ता हूँ 


इस ज़मीन की सारी बस्तियाँ वीरान हैं 
मैं इस उजाड में, मयखाना ढूँढ़ता हूँ 


बात जो कही गयी, न मुझसे न तुमसे   
ख्वाबों में उसका फ़साना ढूँढ़ता हूँ


आज कोई खण्डहर विराना ढूँढ़ता हूँ
तुमसे मिलने का बहाना ढूँढ़ता हूँ

© 2011 कापीराईट सेमन्त हरीश

Thursday, July 14, 2011

मेरे दोस्त.....

चाँद कभी तुम सूरज जैसे,
पश्चिम कभी तो पूरब जैसे,
कभी खुश कभी खफा 
सदा साथ चलते मौसम जैसे..
जिन पर तुम्हारी छाया है,
उन्होंने हर सुख पाया है।
मुझ पर हरदम रहता तुम्हारे प्यार का साया है 
तभी तो मेरा चेहरा सदा मुस्कुराया है..
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