Monday, July 18, 2011
जबसे उसने मुझसे आज़ाद उड़ने की बात कही...
जबसे उसने मुझसे आज़ाद उड़ने की बात कही...
बार बार देखता हूँ खुले आसमान को
आज़ाद उड़ने का बहाना ढूँढ़ता हूँ
ओस सा हर रोज, धूप में पिघलता हूँ
धूल की गहराई में पहचाना ढूँढ़ता हूँ
अँधेरे-अँधेरे, बहते हुए रास्तों पर,
तारों की भीड़ में ठिकाना ढूँढ़ता हूँ
मिट गया इस शहर का, इतिहास सारा
गलियों में पीपल पुराना ढूँढ़ता हूँ
इस ज़मीन की सारी बस्तियाँ वीरान हैं
मैं इस उजाड में, मयखाना ढूँढ़ता हूँ
बात जो कही गयी, न मुझसे न तुमसे
ख्वाबों में उसका फ़साना ढूँढ़ता हूँ
आज कोई खण्डहर विराना ढूँढ़ता हूँ
तुमसे मिलने का बहाना ढूँढ़ता हूँ
© 2011 कापीराईट सेमन्त हरीश
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Bahaana mil jaaye toh kehna .......
ReplyDelete@मीरां .....
ReplyDeleteवक्त पिघलती बर्फ सा होता है और बहाने हर बार वक्त के मोहताज ....
कभी ग़लत लगते ... कभी सही...