Monday, July 18, 2011

आज दामिनी फिर मुस्कायी....

















मेघों की छांव में भीगी हुई  
बारिश की तरह जिसके बालों में घुली बारिश 
एक नदी छुपाकर बैठी अपनी पलकों में,
तपते रेगिस्तान के किनारे..... वो   
इस बार के सावन में इसी बारिश में  
एक दिन बिजली सी हँसी उसने कही  
जाने क्या हुआ भूल गया जो कुछ याद रखना था 
इस घनघोर बारिश में कहीं रास्ता नहीं दिखाई दिया 
जाने क्यों सावन में बादल से मांगने को जी करता है..
"दामिनी हर दम मुस्कुराती रहे ..."
मैं भटका हुआ रास्ता ढूँढता रहूँ उसकी चमक में .....

2 comments:

  1. bharti tiwari sharmaJuly 18, 2011 at 7:10 AM

    bhot sundar

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  2. Saawan ke baadal se kuch maangne ko jee karta hai,lekin...........

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