ये
रिश्ता बड़ा अजीब, कभी सही कभी गलत ना जाने क्यों !
हमने
आवाज़ उठाई हक की, जब भी कभी
लोगों को लगा, कभी सही कभी गलत ना जाने क्यों !
लौट
आने को कहा, जाने वालों को बार बार,
उत्तर जो
मिला, कभी सही कभी गलत ना जाने क्यों !
वक्त
पड़े लोग बदल गए जो भी अपने दीखते थे,
विश्वास
का नतीजा, कभी सही कभी गलत ना जाने क्यों !
माज़ी को
अपने मुड़ कर देखा जो कभी ,
अपना
ही निज़ाम लगा, कभी सही कभी गलत ना जाने क्यों !
© 2010 Capt. Semant
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