Wednesday, December 14, 2011
Friday, December 2, 2011
प्यार में शर्त-ए-वफ़ा ......
ये
रिश्ता बड़ा अजीब, कभी सही कभी गलत ना जाने क्यों !
हमने
आवाज़ उठाई हक की, जब भी कभी
लोगों को लगा, कभी सही कभी गलत ना जाने क्यों !
लौट
आने को कहा, जाने वालों को बार बार,
उत्तर जो
मिला, कभी सही कभी गलत ना जाने क्यों !
वक्त
पड़े लोग बदल गए जो भी अपने दीखते थे,
विश्वास
का नतीजा, कभी सही कभी गलत ना जाने क्यों !
माज़ी को
अपने मुड़ कर देखा जो कभी ,
अपना
ही निज़ाम लगा, कभी सही कभी गलत ना जाने क्यों !
© 2010 Capt. Semant
Friday, November 4, 2011
Wednesday, October 26, 2011
ये अमावस-पूनम के अहसास तो संजोग ने बोये हैं...
चाँद हुआ ही कब रोशनी से परे...
ये अमावस-पूनम के अहसास तो संजोग ने बोये हैं...
तुम जब भी इधर पूनम की चांदनी में नहाते हो...
उस पार कोई अमावस में तारे गिनता है...
ये अमावस-पूनम के अहसास तो संजोग ने बोये हैं...
तुम जब भी इधर पूनम की चांदनी में नहाते हो...
उस पार कोई अमावस में तारे गिनता है...
Wednesday, September 21, 2011
ख्वाहिश...
ख्वाहिश...कि मैं यूं जलूँ
यूं जलूँ कि बादल बनूँ
हवा मुझे तेरे शहर तक ला बरसाए
बूँद बन भिगोऊँ मैं तुझे
ऐसा मौसम एक बार फिर आये इन झुलसे मौसमों के बाद ..
Tuesday, August 16, 2011
India has never lost to Invaders … क्रांति सिर्फ एक विचार नहीं .... It needs implementation ....
They more than kept their word.
Went as mere men. Came back as heroes. In coffins.
"THEY GAVE THEIR TODAY FOR OUR TOMORROW"
Wake Up.... Wake Up.... Get involved for The Nation....
वो क्यों जाता है घर छोड़ कर...
वो क्यों जाता है सारे रिश्ते तोड़ कर...
वो भी त्यौहार मनाता था..
वो भी बिस्तर पर सोता था ...
माँ के आँचल में रोता था ...
बहना के सपने बोता था ….
बाबा के कंधे ढोता था...
जब तुम आराम से सोते हो..
वो खुले आसमान से बातें करता है
चट्टानों पर सोता है
पर्वत की छाती चीरता है,
ताकि नींद तुम्हें आती रहे ,
अब आज तुम क्यों ऐसा कुछ नहीं करते,
आज क्यों स्वंय से ही एक बार के लिए नहीं लड़ते
वो जिस धरती के लिए लहू दे रहा है
माँ पिता पत्नी परिवार छोड़ सुदूर पर्वतों कठिन मैदानों में खड़ा है,
उसे मन में बसालो
अपने अपने मन में एक एक गांधी - सुभाष – भगत सिंह जगा लो,
हाथ उठालो....
भारत बचालो...
India has never lost to Invaders …
घर की दीमक ही घर की दीवार गिराती है,
खेत खाती है …..
Monday, August 8, 2011
Sunday, August 7, 2011
Friday, August 5, 2011
Tuesday, August 2, 2011
ताकि वो बिसरे नहीं...
उसके सिर से पैर तक लहराती नागिन
पर एक भरोसा कर रहा हूँ...
वो डंस के मुस्कुरायी और मैंने मरने से पहले एक शाम मांग ली उसकी छाँव में,
उसकी आंखों में एक झील नीली सी है ,
अपने आपको डूबते देखा मैंने,
जमे आंसुओं की बर्फ पिघले मुझमें कि उससे पहले ही,
फिर बंद कर ली अपनी आखें,
यह सोचकर कि, कैद कर लूं उसे अपनी आँखों से दिल में,
ताकि वो बिसरे नहीं....
बिछुडे नहीं ....
जीवन भर के लिये.............
स्वप्न भी वो..
सुबह भी वो ही...
Thursday, July 28, 2011
हरी घाँस कब आस छोडती है......
.......जैसे सूखते सोते
अचानक भर जाते हैं लबालब,
तुम आओ ! एक बार फिर धमनियों में रक्त की तरह फैल जाओ,
फिर चमक उठेंगी ये बर्फ लदी चोटियाँ अचानक भर जाते हैं लबालब,
तुम आओ ! एक बार फिर धमनियों में रक्त की तरह फैल जाओ,
फिर पिघल जायेंगी ये सफेद चादरें
बसंत अब लौट आयेगा
हरी घाँस कब आस छोडती है,
बर्फ कभी न कभी तो पिघलती है,हरी घांस ये सच जानती है,
तभी हर बार एक बार फिर घुट जाने को उग आती है...
Wednesday, July 27, 2011
Monday, July 25, 2011
आँखों में छुपे समंदर के पार...
बालकनी से देखती काले सावन के बादल
समेट लेती है वह जूड़े में अपनी फ़ैली लंबी परछाई
जिसके घने काले आगोश में , शाम खामोश प्यार की गवाही देती थी
घूमने लगती है यूँ ही दरवाजे को खुला रख
इधर-उधर कमरे से चौके तक
कभी सोफे का सीधा करती
घूमने लगती है यूँ ही दरवाजे को खुला रख
इधर-उधर कमरे से चौके तक
कभी सोफे का सीधा करती
कभी एक बार फिर से दूध गर्म करती ..
बिखरे घर को समेटती,
बिखरे घर को समेटती,
बिस्तर की सिलवटों को मिटाती ,
व्यस्त होने का दिखावा करती,
हँसती है फीकी हँसी... आँखों में छुपे समंदर के पार... तुम एक बार बाहें फैलाओ तो सही.....
अजनबी...
तुम एक बार बाहें फैलाओ तो सही..
मुझे मालूम है जब तुम ....
तब...
मेरे बंधे सपनों की सब गिरहें खुल जायेंगी
और मैं तुम्हारी कोशिशों में और भी मासूम हो जाऊँगी
उस दिन मैं सारी विष घुली यादें एक घूँट में पी जाऊंगी
सिर्फ एक तुम्हारे नशे में चूर ...
मेरे हौंसलों की नई पगडंडियों पर गिरती रात और बरसात का पानी...
इस बार का सावन नया नया...
मैं एक तितली की तरह.... तुम्हारे ख्वाबों के रंगों में सराबोर हो कर आकाश में उड़ जाऊँगी....
चाहे जब मुझे आकाश में उड़ाना, पर मुझे अपनी चाहत में बांधे रखना
ताकि इस बार तुम्हारे बंधनों में बंध कर जी सकूँ, उड़ने का सुख पहचान सकूँ
मुझे प्यासी ही रखना, ताकि हमेशां प्यासी रहूँ, तुम्हारी प्यास में....
अनंत तक इस प्यास को जी सकूँ,
और शून्य में इसी प्यास में मर सकूँ.....
तुम एक बार बाहें फैलाओ तो सही..
मुझे मालूम है जब तुम ....
तब...
मेरे बंधे सपनों की सब गिरहें खुल जायेंगी
और मैं तुम्हारी कोशिशों में और भी मासूम हो जाऊँगी
उस दिन मैं सारी विष घुली यादें एक घूँट में पी जाऊंगी
सिर्फ एक तुम्हारे नशे में चूर ...
मेरे हौंसलों की नई पगडंडियों पर गिरती रात और बरसात का पानी...
इस बार का सावन नया नया...
मैं एक तितली की तरह.... तुम्हारे ख्वाबों के रंगों में सराबोर हो कर आकाश में उड़ जाऊँगी....
चाहे जब मुझे आकाश में उड़ाना, पर मुझे अपनी चाहत में बांधे रखना
ताकि इस बार तुम्हारे बंधनों में बंध कर जी सकूँ, उड़ने का सुख पहचान सकूँ
मुझे प्यासी ही रखना, ताकि हमेशां प्यासी रहूँ, तुम्हारी प्यास में....
अनंत तक इस प्यास को जी सकूँ,
और शून्य में इसी प्यास में मर सकूँ.....
Monday, July 18, 2011
आज दामिनी फिर मुस्कायी....
मेघों की छांव में भीगी हुई
बारिश की तरह जिसके बालों में घुली बारिश
एक नदी छुपाकर बैठी अपनी पलकों में,
तपते रेगिस्तान के किनारे..... वो
इस बार के सावन में इसी बारिश में
एक दिन बिजली सी हँसी उसने कही
जाने क्या हुआ भूल गया जो कुछ याद रखना था
इस घनघोर बारिश में कहीं रास्ता नहीं दिखाई दिया
जाने क्यों सावन में बादल से मांगने को जी करता है..
"दामिनी हर दम मुस्कुराती रहे ..."
मैं भटका हुआ रास्ता ढूँढता रहूँ उसकी चमक में .....
जबसे उसने मुझसे आज़ाद उड़ने की बात कही...
जबसे उसने मुझसे आज़ाद उड़ने की बात कही...
बार बार देखता हूँ खुले आसमान को
आज़ाद उड़ने का बहाना ढूँढ़ता हूँ
ओस सा हर रोज, धूप में पिघलता हूँ
धूल की गहराई में पहचाना ढूँढ़ता हूँ
अँधेरे-अँधेरे, बहते हुए रास्तों पर,
तारों की भीड़ में ठिकाना ढूँढ़ता हूँ
मिट गया इस शहर का, इतिहास सारा
गलियों में पीपल पुराना ढूँढ़ता हूँ
इस ज़मीन की सारी बस्तियाँ वीरान हैं
मैं इस उजाड में, मयखाना ढूँढ़ता हूँ
बात जो कही गयी, न मुझसे न तुमसे
ख्वाबों में उसका फ़साना ढूँढ़ता हूँ
आज कोई खण्डहर विराना ढूँढ़ता हूँ
तुमसे मिलने का बहाना ढूँढ़ता हूँ
© 2011 कापीराईट सेमन्त हरीश
Thursday, July 14, 2011
मेरे दोस्त.....
चाँद कभी तुम सूरज जैसे,
पश्चिम कभी तो पूरब जैसे,
कभी खुश कभी खफा
सदा साथ चलते मौसम जैसे..
जिन पर तुम्हारी छाया है,
उन्होंने हर सुख पाया है।
मुझ पर हरदम रहता तुम्हारे प्यार का साया है
तभी तो मेरा चेहरा सदा मुस्कुराया है...
पश्चिम कभी तो पूरब जैसे,
कभी खुश कभी खफा
सदा साथ चलते मौसम जैसे..
जिन पर तुम्हारी छाया है,
उन्होंने हर सुख पाया है।
मुझ पर हरदम रहता तुम्हारे प्यार का साया है
तभी तो मेरा चेहरा सदा मुस्कुराया है...
Thursday, May 26, 2011
Monday, May 23, 2011
Monday, May 16, 2011
Tuesday, May 10, 2011
शायद ज़िंदगी बदल रही है.....!!!
शायद ज़िंदगी बदल रही है
जब में छोटा था शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी मुझे
याद है मुझे मेरे घर से स्कूल तक का वो रास्ता,
क्या नहीं था वहाँ, चाट के ठेले , जलेबी की दूकान , बर्फ के गोले, सब कुछ...
अब वहाँ मोबाईल शॉप , वीडिओ पार्लर है , फिर भी सब सूना है ...
शायद अब दुनिया सिमट रही है,
जब
में छोटा था , शामें बहुत लम्बी हुआ करती थी , मैं हाथ में
पतंग की डोर पकडे घंटों उड़ा करता था , वो लम्बी लम्बी साईकिल की
रेस , वो बचपन के खेल , वो हर शाम थक कर चूर हो जाना ,
अब शाम नहीं होती , दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है , शायद वक़्त सिमट रहा है,
जब में छोटा था , दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना , दोस्तों के घर का खाना, वो लड़कियों की बातें , वो साथ में रोना .....
मेरे अब भी कई दोस्त हैं , पर दोस्ती न जाने कहाँ ....
जब भी ट्राफिक सिग्नल पर मिलते हैं,
HI करते हैं और अपने अपने रस्ते चल निकलते हैं ,
होली , दिवाली , जन्मदिन , नए साल पर बस SMS आ जाते हैं
शायद अब रिश्ते भी बदल रहे हैं.....
दोस्त भी बदल रहे हैं .....
हम आधुनिक हो रहे हैं...
Friday, May 6, 2011
भले प्यार का रंग ना बदला....!!!
भले प्यार का रंग ना बदला!
मेरे गाँव का रंग ना बदला,
पीपल छांव का रंग ना बदला,
देख, प्यार का रंग ना बदला !
परिवर्तन के नियम ठगे हैं !
हर पल हम कुछ बने नए हैं !
माँ का आँचल मैला लगता,
पिता का घेरा तोड़ चुके हैं,
बाबा की खटिया ना बिसरी,
नानी का चूल्हा ना बदला,
भले प्यार का रंग ना बदला!
मेरे गाँव का रंग ना बदला,
पीपल छांव का रंग ना बदला,
देख, प्यार का रंग ना बदला !
अब तक है ये कितना उजला !
आम का पकना, रस्ता तकना
पगडंडी का घर घर रुकना ,
कोयल का पंचम सुर गाना,
हर महीने पूनम का आना,
अरे कहो! कब व्रत है अगला ?
तीज, चौथ कब, कब कोजगरा ?
क्या कहते हो सब कुछ बदला !
भले प्यार का रंग ना बदला!
मेरे गाँव का रंग ना बदला,
पीपल छांव का रंग ना बदला,
देख, प्यार का रंग ना बदला !
Wednesday, May 4, 2011
फिर यों ही गुजर गया आज का दिन....!!!
डल झील पर सूर्यास्त |
क्या बात है
फिर यों ही गुजर गया
तुम्हारा आज का दिन
न तो प्यार का गीत लिखा
ना ही उदासी की कहानी पोंछी
ना तो उगते सूरज को नमन किया,
ना तुलसी को जल दिया,
ना ही डूबते सूरज की
फोटो खींची
ना ही बहते झरनों की तस्वीर बनाई
ना ही हिना वाले
हाथों को छुआ,
न ही चूड़ी वाली
कलाई को चूमा,
न ही पनीली
आंखों में झांका,
न ही दर्दीली
आवाज़ को आंका,
जाने किस अँधेरे में
खोये रहे तुम
कांच की दीवारों में सोये
रहे तुम,
अपने ही गणित के अनसुलझे सवालों के,
गुणा, भाग, धन, ऋण, प्रतिशत में,
उलझे रहे तुम,
शून्य ही रहा अंत तक अनंत,
सत्य से परे असत्य के मंथन में,
क्या बात है
फिर यों ही गुजर गया
तुम्हारा आज का दिन
बिखर गया दिन,
यों ही गुज़र गया
आज का दिन।
© 2010 कापीराईट सेमन्त हरीश
एक तुम्हें पाने की ज़िद.....!!!
एक तुम्हें पाने की ज़िद थी,
उम्मीदों में तुम ही थी बस,
बाकी तो सब पा ही गया हूँ,
शौक नहीं था पर,
वो भी छोड़ दी मैंने,
उम्मीदों में तुम ही थी बस,
बाकी तो सब पा ही गया हूँ,
शौक नहीं था पर,
तुम्हारी खातिर,
राग-रंग, शानोशौकत पर छा भी गया हूँ,
राग-रंग, शानोशौकत पर छा भी गया हूँ,
हांसिल है मुझे,
हर आँख को चमकाता,
नज़रों को भाता ,
गर्व से उठाता ,
एक समंदर एक मंज़र,
जबरन बांधी आशायें,
लेकिन मैं बेबस,
तुम नहीं,
तुमको पाने की जिद भी नहीं,
सिर्फ सन्नाटे,
यादों की लहरों का निरंतर बहता शोर,
खिड़की से ताकते रहकर,
टूटते सितारों से मांगने की आदत छोड़ दी मैंने,
बस एक तुझे पाने की ज़िद थी,
वो भी छोड़ दी मैंने......
उन ख्वाबों की,
उन गीतों की,
उन पुराने खतों में उलझे सुलझे,
कहे अनकहे शब्दों की, सवालों की, जवाबों की,
हर दिशा मोड़ दी मैंने.
बस एक तुम्हें पाने की ज़िद थी,
हर दिशा मोड़ दी मैंने.
बस एक तुम्हें पाने की ज़िद थी,
वो भी छोड़ दी मैंने......
© 2010 कापीराईट सेमन्त हरीश
मैं एक पत्थर ....!!!
मैं पत्थर पड़ा रहा ठोकरों में,
तपता रहा, भीगता भी रहा,
तुमने कभी उठा कर फेंका किसी चिड़िया की ओर,
कभी तराश दिया मंदिर की मूरत में,
कभी अंगुली की अंगूठी में,
कभी नथली में किसी की चमकती सूरत में,
मैं सराहा जाऊं या हो जाऊं बदनाम,
तुम्हें क्या,
पत्थर तो होता ही बेजान है,
अपनी सफाई क्या देगा,
दीवार में चुन गया तब भी मिटा,
दो किनारों को बाँधा तब भी मिटा,
इंतज़ार हमेशा परिणाम का ही रहता,
पत्थर सिर्फ एक नज़र की राह तकता है....
अपना लो तो अंगुली से अटारी तक कीमत ही कीमत...
फेंक दो तो नफ़रत ही नफ़रत,
तुम्ही हो मेरे कर्ता,
तुम्ही हो संगकार,
तुम्ही हो संगदिल,
मेरा क्या,
मैं पत्थर पड़ा रहा ठोकरों में,
तपता रहा, भीगता भी रहा,
तुमने कभी उठा कर फेंका किसी चिड़िया की ओर,
कभी तराश दिया मंदिर की मूरत में,
कभी अंगुली की अंगूठी में,
कभी नथली में किसी की चमकती सूरत में...
© 2010 कापीराईट सेमन्त हरीश
Wednesday, April 20, 2011
कितने मौसम बीते
कितने मौसम बीते,
कितनी यादें समेट ले गए,
मैं भीगता रहा बरसातों में, तुम सिमटे रहे ठंडी रातों में,
गर्मी हमारे प्यार की लेकिन बनी रही....
पलट कर हाथ जो थमा मेरे यार ने फिज़ा बदल गयी..
इक बर्फ की चादर थी झट से पिघल गयी...
मैं गंगा बहती रही
मैं गंगा बहती रही
और नाले बढ़ते गए
सरकार और पैरोकारों के घोटाले बढते गए......
और नाले बढ़ते गए
सरकार और पैरोकारों के घोटाले बढते गए......
खोजने को मैं ही ना मिला
बिछुडे घरवाले बढते गए,
मैं गंगा बहती रही और नाले बढते गए....
उम्मीद के आसमान पर चमक रहा था उगता सूरज
सपनों के शहर में बादल काले बढते गए,
मैं गंगा बहती रही और नाले बढते गए....
सपनों के शहर में बादल काले बढते गए,
मैं गंगा बहती रही और नाले बढते गए....
घिसटता चल रहा है घुटनों पर हर इंसान यहाँ,
उड़ते पैरों में हरपल रिसते छाले बढते गए,
मैं गंगा बहती रही और नाले बढते गए....
उड़ते पैरों में हरपल रिसते छाले बढते गए,
मैं गंगा बहती रही और नाले बढते गए....
© 2011 कापीराईट सेमन्त हरीश
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